Parshant Kishor -- प्रशांत किशोर

Parshant Kisor
2025 के बिहार के चुनाव में एक नऐ चेहरे देखने को मिल हरे है जिससे चुनावी र्पाटी RJD, JDU अन्‍य र्पाटियो मे डर का माहोल है मगर क्‍यो और कौन है ये नया चैहरा।

तो आऐ दोस्‍तो जानते बिहार के लाल प्रशानत किशोर जी के बारे में

प्रशांत किशोर: पर्दे के पीछे का राजनीति का चाणक्‍य

दोस्‍तो जब भी भारत की चुनावी राजनीति में राणनीति की बात होती है, तो एक ही नाम सबसे पहले सामने आता है- प्रशांत किशोर। यह वो नाम है जिसने पिछले एक दशक में भारतीय राजनीति की दिशा और दशा बदल दी है, जिसने कई बडे़-बड़े नेताओं को बनाया है यही नही हमारे देश के प्रधान मंत्री भी सामील है। प्रशांत किशोर कैमरे से दूर, शांत रहकर राणनीति बनाते है। प्रशांत किशोर को कई लोग पॉलिटिकल स्‍टैटेजिस्‍ट चुनावी जादूगर और बैकस्‍टेज मास्‍टरमाईड जैसे नामों से जानते हैं। लेकिन उनकी कहानी सिर्फ एक राणनीतिकार की नहीं, बल्कि एक सोच संघर्ष और बदलाव की है।   

जीवन की शुरूआती दौर

प्रशांत किशोर का जन्‍म बिहार के रोहतास जिले में स्थित सासाराम के पास कोनार गॉव में हुआ है। उनके पिता एक डॉक्‍टर थे और चाहते थे कि उनका बेटा भी मेडिकल या इंजीनियरिंग जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में जाए। प्रशात पढाई में तेज थे, लेकिन उन्‍हें क्‍या बनना हे इसका फैसला उन्‍हें खुद नहीं पता था।

दिल्‍ली युनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज से ग्रेजूएशन के बाद उन्‍होंने कुछ समय ब्रेक लिया। इसके बाद उनहोंने पब्लिक हेल्‍थ मं पोसट ग्रेजूएशन किया, जिसमें भी उन्‍होंने ऐ साल का ब्रेक लिया। इतना ब्रेक लेने पर कोई भी माता-पीता घबरा जाते है, लेकिनप्रशात का विजन कुद अलग था। 

जीवन की शुरूआती दौर

प्रशांत किशोर का जन्‍म बिहार के रोहतास जिले में स्थित सासाराम के पास कोनार गॉव में हुआ है। उनके पिता एक डॉक्‍टर थे और चाहते थे कि उनका बेटा भी मेडिकल या इंजीनियरिंग जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में जाए। प्रशात पढाई में तेज थे, लेकिन उन्‍हें क्‍या बनना हे इसका फैसला उन्‍हें खुद नहीं पता था।

दिल्‍ली युनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज से ग्रेजूएशन के बाद उन्‍होंने कुछ समय ब्रेक लिया। इसके बाद उनहोंने पब्लिक हेल्‍थ मं पोसट ग्रेजूएशन किया, जिसमें भी उन्‍होंने ऐ साल का ब्रेक लिया। इतना ब्रेक लेने पर कोई भी माता-पीता घबरा जाते है, लेकिनप्रशात का विजन कुद अलग था।

 

पढाई खत्‍म करने के बाद उनहें संयुक्तराष्‍ट्र (UN) में नौकरी मिल गई। पहली पोस्टिंग हैदराबाद में हुई और फिर उनका प्रमोशन हुआ और‍ जिनेवा (स्विटजरलैंड) के ऑफिस मं पोस्टिंग मिली। यहॉं सब कुद अच्‍छा चल रहा था बढिया सेलरी, ग्‍लोबल exposure  और एक सुरक्षित भविष्‍य।

लेकिन साल 2011 में एक सर्वें ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी।

Narendra Modi
गुजरात मॉडल पर सवाल और नरेंद्र मोदी से पहली मुलाकात

जिनेवा में काम करते हुए उन्‍होंने एक सर्वे किया जो भारत के 6 उभरते राज्‍यों में कुपोषाण की स्थिति पर आधरित था। इस सर्वे में गुजरात की स्थिति सबसे खराब पाई गई। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे। जब उनहें यह रिपोर्ट मिली, तो उन्‍होंने खुद प्रशांत किशंर को फोन किया।

मोदी ने उन्‍हें कहा - शिकायत करने की बजाय हमारे साथ आकर काम किजिए।

ये ऑफर बडा़ था, लेकिन रिस्‍क भी उतना ही। एक मिडिल क्‍लास परिवार का लडका, UN  जैसी सुरक्षित नौकरी छोड़कर एक राजनेता के साथ काम करने का जोखिम ले, ये आसान फैसला नहीं था। लेकिन प्रशांत ने यह चैलेज स्‍वीकार किया – एक शर्त के साथ – मैं सिर्फ आपको रिपोर्ट करूगां किसी राजनीतिक संगठन का हिस्‍स नहीं बनूंगा

टीम मोदी में पर्दें के पीदे का खिलाडी

2011 से प्रशांत किशोर नरेंद्र मोदी के साथ जुड गए। इस वक्त तक वे किसी को नहीं जानते थे, मीडिया भी उन्‍हें तवज्‍जो नहीं देती थी। उनहोंने मोदी के लिए स्‍वीच लिखीनी शुरू की, नए-नए चुनावी आइडिया तैयार किए और सोशल मिडिया की शक्ति को बखूबी समझाकर उसका इस्‍तेमाल किया।

चाय पर चर्चा यूूूनीटी  मंथन, और सोशल मिडिया का क्रातिकारी उपयोग- यह सब प्रशांत किशोर की देन था।

CAG से I-PAC  तक: एक पंशेवर संस्‍था की शुरूआर

 

2013 मं प्रशातंने अपने साथियों प्रतीक, रूषिराज और विनेश के साथ मिलकर CAG (Citizens for Accountable Governance) नाम की PR एजेंसी बनाई। इसने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए पूरी रणनीति तौयार की। 2014 के बाद इसका नाम बदलकर I-PAC (Indian Political Action Committee) रख दिया गया।

2014 का चुनाव बीजेपी की रिकॉर्ड जीत के साथ खत्‍म हुआ। बीजेपी को अकेले 282 सीटें मिली। मीडिया में अचानक एक नया नाम छा गया- प्रशांत किशोंर।

हर दल के लिए काम करने वाले रणनीतिकार

2014 के बाद प्रशात किशेर एक के बाद एक राज्‍यों में चुनाव जीतने की राणनीति बनाते गए। उनहोंने अलग-अलग विचारधाराओ वाली पार्टियों के लिए काम किया।

JDU-RJD
2015 - महागठबंघन (JDU-RJD) बिहार: बीजेपी की लोकप्रियता के बावजूद महागठबंधन को चुनाव जिताया।

AMARENDRA SINGH
2017 - कांग्रेस पंजाब: कैप्‍टन अमरिंदर सिंह को सीएम बनवाया।

JAGMOHAN REDDY
2019 - YSR  कांग्रेस आंध्रप्रदेश: जगन मोहन रेडडी  की जबरदस्‍त जीत।

MAMTA DIDI
2021 – TMC  पश्च्मि बंगाल: ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत।

KEJARI WAAL
2020 - दिल्‍ली: आम आदमी पार्टी का पुन: जीत मे योगदान

प्रशांत किशोर की खासियत यही रही कि उन्‍होंने किसी एक विचारधारा से बंधकर नहीं, बलिक प्रोफेशनल अप्रोच से काम किया। वे कहते हैं मैं किसी पार्टी का नहीं जनता के मुड का साथी हूं।

राजनीति में प्रवेश और फिर विरोध

2018 मं प्रशांत किशोर ने JDU जॉइन किया और राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष बनाए गए। यह राजनीति में उनकी पहली औरपचारिक एंट्री थी। लेकिन साल 2019 में जब मोदी सरकार CAA   लेकर आई और JDU ने उसका समर्थन किया, तो पीके ने खुलकर पार्टी के खिलाफ ट्वीट कर दिया।

यह ट्वीट सीधे तौर पर नीतिश कुमार की आलोचना थी। नतीश ये हुआ कि प्रशात किशोर को पार्टी से इस्‍तीफा देना पड़ा।

पीआर छोड़ने की दो बडी वजहें

प्रशांत किशोर ने फिर चुनावी रणनीति से दूरी बनाने की घोषण कर दी। इसके पीछे दो घटनाएं अहम थी:

  1. पंजाब 2017): अमरिंदर सिंह के मेनिफेस्‍टो नवजवान पंजाब में वादा किया गया था कि कॉन्‍ट्रैक्‍ट वर्कर्स को परमानेंट किया जाएगा। चुनाव जीतने के बाद सरकार ने वादा पुरा नही किया। पीके को जनता के गुस्‍से का सामना करना पड़ा ओर उन्‍हें फ्रॉड तक कहा गया।
  2.  बिहार (2015): सात निश्‍च्‍य योजना का ब्‍लूप्रिंट पीक ने तैयार किया था लेकिन नीतिश कुमार सरकार ने उसे सही तरीके से लागू नहीं किया। पीके को लगा कि उनकी योजनाएं सिर्फ कागजो मे रह जाती हैं और जनता को धोखा होता है।

अबकी बार जन सुराज

चुनावी रणनीतिकार से अब प्रशात किशोर नेता की भूमिका में आ चुके हैं। उन्‍होंने जन सुराज अभियान की शुरूआत की, जिसका मकसद बिहार में एक नई  राजनीतिक सोच लाना है।

वे कहते है

अब किसी पार्टी के लिए काम नहीं करूंगा अब अपने लिए अपने बिहार के लिए काम करूगा।

जन सुराज को पार्टी का दर्जा तो नहीं मिला है लेकिन पीके बिहार के गांव-गांव जाकर पैदल यात्रा कर रहे हैं और जनता से सीधे संवाद कर रहे है। उनका सपना हे एक नया बिहार जहां जातिवाद, भ्रष्‍टाचार और बेरोजगारी का अंत हो

प्रशात किशोर की कहानी सिर्फ एक राजनीतिक रणनीतिकार की नहीं, बल्कि एक ऐसे व्‍यक्ति की है जिसने भारत की राजनीति का एक नया दृष्टिकोण दिया। उन्‍होंने नेताओं को सिखाया कि सिर्फ भाषण नहीं डेटा, माइक्रो प्‍लानिंग और टेक्‍नोलॉजी से भी चुनाव जीते जाते है।

आज जब वे खुद राजनीति में उतर चुके हैं तो सबकी निगाहें उन पर है। क्‍या वे नता के रूप में भी वैसा ही जादू दिखा पाएंगे जैसा उनहोंने पर्दें के पीछे किया।

 


No comments

Powered by Blogger.